वन्दे मातरम और विवाद

18 और 19 जून को लोकसभा चुनाव 2019 ने चुन के आये नए नवेले सांसदों ने शपथ ली उस समय कुछ साधारण नही घटा 19 जून को तो सब हदे ही पर हो गयी जब किसी ने जय श्रीराम, किसी ने अल्लाह हु अकबर के तो किसी ने वन्दे मातरम के नारे लगाए। हद तो तब हो गयी जब सपा के एक मुस्लिम सांसद ने वन्दे मातरम को इस्लाम विरोधी बता दिया। पर क्या सच मे वन्दे मातरम इस्लाम विरोधी इस बात का खंडन करते ये तथ्य:-

स्वतंत्रता से पहले लाहौर से छपने वाला उर्दू दैनिक समाचार पत्र…जिसका नाम था ‘वंदेमातरम’

इस समाचार पत्र के संपादक व समस्त कर्मचारी मुस्लिम थे जिन्हें वंदेमातरम गाने अथवा लिखने से कोई समस्या नही थी
यह वंदेमातरम का नारा ही था जिसे हिन्दू व मुस्लिमों ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई का हथियार बनाया था

बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था ‘वंदे मातरम’. वंदे मातरम के राष्ट्रीय गीत बनने तक एक लंबा सफर रहा है महर्षि अरविंदो ने इस गीत का अंग्रेजी (1909) में और जनाब आरिफ मोहम्मद खान ने उर्दू में अनुवाद किया. जब 14 अगस्त, 1947 की आधी रात को आजादी मिली, तो सबसे पहले वंदे मातरम ही गाया गया.

दुर्भाग्य से आज तुच्छ राजनीतिवश कुछ लोग वंदेमातरम को इस्लाम के विरुद्ध बताकर खारिज कर रहे हैं ।

और जिनको उर्दू आती है वे इस बात का पुख्ता सबूत इस फ़ोटो से भी ले सकते है

Leave a comment